क्या आपने सुनी है यह आवाजें – पेड़ों की पत्तियां कहती है- हमसे पत्तल, दोने, चटाई, बनाओ। फूल कहते हैं हमसे घर, मंदिर, आंगन, त्योहार सजाओ। लकड़ियां कहती हैं बनो तुम कुशल कारीगर। इस संसार को तुम्हारी कला का ही इंतजार है। ये मिट्टी कहती है बनाओ बर्तन जिसमें भोजन करता पूरा संसार है। ये पहाड़ कहते हैं तराश कर मुझे जगा तेरे भीतर का शिल्पकार। ये खिलखिलाती संपूर्ण प्रकृति जो स्वयं में परिपूर्ण है, आत्म निर्भर है, शायद इसीलिए कदम कदम पर हमें ये बताती है कि हम आत्मनिर्भर कैसे बने???
आइए आज बात करते हैं ,आसाम के अद्भुत बांबू क्राफ्ट की। इस कला को वनवासियों की आजीविका का आधार बनाने वाली सेवा भारती के पांचजन्य कुटीर उद्योग की जिसके अंतर्गत 2022 तक 50 लाख का टर्नओवर हो चुका है व करीब 60 से ज्यादा गांवो को लाभ मिला है।हजारों हाथ बांस की कलात्मक चीजों को बनाकर स्थानीय बाजार, सौराष्ट्र मेला, अपना ट्रेड फेयर, बिहू मेला, आसाम मेला जैसी प्रदर्शनियों का लाभ उठाकर अपने जीवन में उन्नति की ओर अग्रसर है।
बांबू क्राफ्ट यहां हर घर की संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न अंग है। बांस की बनी वस्तुएं जब नए नए रुप में प्रदर्शनी में सुसज्जित की जाती है तो उन्हें देखकर सबकी आंखें फटी की फटी रह जाती है। सच ही है मानव मस्तिष्क असीम कल्पनाओं का सागर है और यह बात अविनाश जी से बेहतर कौन बता सकता है? 2009 से सेवा भारती से जुड़े जिला संयोजक अविनाश हजारिका की जो स्वयं बांस की वस्तुएं बनाने का प्रशिक्षण लेकर आत्मनिर्भर बने और 2022 तक हजारों लोगों को बांस की अनेक वस्तुएं बनाने का प्रशिक्षण दे चुके हैं। जब यह कार्य आरंभ हुआ तो सिर्फ 7-8 प्रोडक्ट ही बनाए जाते थे , किंतु आज आसाम में लगने वाली बड़ी-बड़ी प्रदर्शनियों में 20 से ज्यादा प्रकार के प्रोडक्ट लोगों को दिखाए जाते हैं ।नए सृजनकार की नई सृजन शक्ति जुड़ती चली गई और कल्पना से परे बांस के अनेक प्रोडक्ट बनते चले गए।
सेवा भारती द्वारा आसाम जोरहाट में पांचजन्य कुटीर उद्योग के अंतर्गत गांव गांव जाकर बांबू क्राफ्ट प्रशिक्षण शिविर लगाए जा रहे हैं। अविनाश जी के साथ साथ नगेन कलिता एवं रोमेन हजारिका भी शिक्षक एवं सहयोगी के नाते इस पूरे कार्य में अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। पहाड़ी इलाके जहां पक्के रास्ते व बिजली तक नहीं है उन जगह पर जाकर लोगों को पूरे विश्वास के साथ बांबू क्राफ्ट का पूरा प्रशिक्षण देना, शिविर लगाना ,अपने आप में एक बहुत बड़ा कार्य है।
जीवन में खोजी होना बहुत आवश्यक है जब एक दरवाजा बंद हो तो एक खोजी व्यक्ति दूसरा दरवाजा खोज ही लेता है। नगेन कलिता बताते हैं कि माजुली गांव के दिव्यजोति नाथ हो या जोरहाट के प्रणबज्योति चांगमाई गरीबी से लड़ते-लड़ते ग्रेजुएशन करने के बाद भी दरबदर नौकरी की तलाश में ठोकर खा रहे थे, पर कहीं भी नौकरी नहीं मिली। बूढ़े मां बाप व परिवार की छोटी-छोटी जरूरतों को भी पूरा नहीं कर पाने का गम उन्हें भीतर ही भीतर कचोट रहा था। सेवा भारती का प्रशिक्षण शिविर उनके लिए एक वरदान साबित हुआ भीतर की सृजन शक्तियों ने उन्हें नया आकाश दे दिया, उनकी कल्पनाओं को मानो पंख मिल गए । जहां 100 रू. का भी जुगाड़ नहीं था वहां आज 10000 से 15000 रू. महीना कमा रहे हैं।
कहने को भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है पर आज भी सच यह है कि आमतौर पर भारतीय गृहिणी की प्रत्यक्ष रूप से कोई आय नहीं है, वह कुछ हजार रुपए के लिए भी अपने पति की कमाई पर ही निर्भर रहती है। आसाम के घर-घर में महिलाओं द्वारा बंबू से सामान बनाए जाते हैं परंतु अपने सामानों का प्रमोशन कैसे किया जाए??? इन्हें स्थानीय बाजार तक कैसे लाया जाए?इन सभी प्रश्नों का उत्तर आमतौर पर यह महिलाएं नहीं खोज पाती , परिणाम स्वरूप इनका हुनर उसी चारदीवारी में बंद होकर रह जाता है। पिछले कई सालों से लगातार अनेक गांव माजुली, गोलाघाट जिला जैसे अनेक स्थानों पर जा जा कर सेवा भारती की ओर से बेम्बू प्रशिक्षण शिविर लगाए जा रहे हैं, जहां पुरुषों के साथ सैकड़ों महिलाएं भी बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। सेवा भारती के इस प्रोजेक्ट के जरिए उन्हें अपने सभी प्रश्नों के उत्तर सहजता से मिल रहे हैं। आज उन्हीं में से एक दीपशिखा बरसुतिया अपनी कुशल कारीगरी के साथ 10000 रू. महीना कमा रही है और इतना ही नहीं उनके हाथों के बने सामान लोगों को बहुत पसंद आते हैं। इस प्रशिक्षण शिविर ने ना केवल उन्हें आत्मनिर्भर बनाया बल्कि स्वयं से एक अलग पहचान भी करवाई।