ढाई साल का बच्चा, और वजन मात्र 6 किलो देखकर आँखें ठहर सी गईं, ह्रदय ईश्वर से उस बच्चे को बचाने की प्रार्थना कर रहा था, परंतु दिमाग जवाब दे चुका था। रात होते-होते खबर मिली वह नन्ही सी जान अब इस दुनिया में नहीं है। बात एक बच्चे की नहीं थी, प्रत्येक वर्ष कुपोषण का शिकार होते करीब 70-80 बच्चे महाराष्ट्र की कर्जत तहसील के वनवासी क्षेत्रों में दम तोड़ रहे थे। किस प्रकार इन बच्चों को पोषित कर देश का भविष्य बचाया जाए? राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाल्यकाल से स्वयं सेवक प्रमोद करंदीकर जी को इस सवाल ने इस कदर बेचैन कर दिया, कि उन्होंने इस विषय पर गंभीरता से कार्य करने का निर्णय ले लिया।वर्षों तक कल्याण आश्रम में पूर्णकालिक रहे, प्रमोद करंदीकर जी आश्रम के द्वारा वनवासी क्षेत्रों की परिस्थितियों को अच्छी तरह से समझ चुके थे। स्वतंत्र रूप से कुपोषण पर काम करने के लिए 2003 में उन्होंने शबरी सेवा समिति की नींव रखी। अपनी पत्नी श्रीमती रंजना करंदीकर के साथ मिलकर करजत जिले के कुछ गांवो से 2 माह से 5 वर्ष तक के करीब 700 कुपोषित बच्चों को चिन्हित किया। उन बच्चों की साफ सफाई, नियमित चिकित्सीय जांच, पौष्टिक आहार( जिनमें दालें, मूंगफली, नागली, नारियल तेल, गाय का देसी घी इत्यादि) के निःशुल्क पैकेट वितरित किए, और साथ ही गर्भवती महिलाओं के पोषण पर भी ध्यान दिया। साथ ही बच्चों के अभिभावकों को भी शिक्षित किया गया।
नतीजे चौंकाने वाले थे, 2002 में जहां इस तहसील में 70-80 बच्चे प्रतिवर्ष कुपोषण के कारण मौत की नींद सो जाते थे, वहीं 2008 में उसकी संख्या 3-4 तक सीमित हो गई। यानी अबतक 20,000 बच्चों की जान बचाई जा चुकी है।
रायगड़, पालघर, ठाणे, नंदुरबार, धुले, जलगांव, सेंधवा, दादरा नागर हवेली (केंद्र शासित) 8 जिलों के वनवासी क्षेत्रों में गांव वालों की सहायता करते हुए शबरी सेवा समिति का 1600 से भी ज्यादा गांवों में कार्य चल रहा है, जिससे वनवासी क्षेत्रों के 47 कार्यकर्ता जुड़े हैं।
जीवन के साथ समस्याएं तो अनवरत चलती ही रहती हैं, वनवासी क्षेत्रों में माता पिता दिन रात खेतों में मेहनत मजदूरी करके बच्चों का पेट तो भर लेते हैं, परंतु बच्चों को पढ़ाने लिखाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं रहती। शबरी सेवा समिति ने 2006 से सरकारी, प्राइवेट स्कूल और गांवों में अनेक शैक्षिक कार्यक्रम आयोजन करते हुए, प्रत्येक जन्माष्टमी पर पुस्तक हांडी उत्सव का प्रारंभ किया। जिसके अंतर्गत बच्चों को रामायण, महाभारत एवं अनेक नैतिक शिक्षा की किताबों का निःशुल्क वितरण किया जाता है।
कर्जत तहसील के कशेले गांव में एकनिःशुल्क छात्रावास है, जहां 35 छात्र पढ़ रहे हैं, इतना ही नहीं किशोरियों के शैक्षिक शिविर व बच्चों के साथ महिलाओं में भी पढ़ाई के प्रति जागरूकता लाने के लिए गांवों में 10 निःशुल्क पुस्तकालय भी खोले गए हैं।
वनवासी कल्याण आश्रम की अखिल भारतीय सह महिला प्रमुख रह चुकी श्रीमती रंजना जी बताती हैं, कि दोनों पैरों से विकलांग निर्मला की शादी नहीं हो पा रही थी, पर सिलाई सेंटर से ट्रेनिंग लेकर अपने पैरों पर खड़े होते ही उसका विवाह हो गया। आज विवाह के बाद वह घर खर्च में अपने पति का पूरा सहयोग कर रही है।
शुरवाणी गांव की कविता, जिसने ट्रेनिंग लेकर ना केवल अपना बुटीक खोला, बल्कि अपने पति का नया टैक्सी बिजनेस शुरू करने के लिए, अपनी बचत से रूपए 35000 भी बैंक में भी जमाकर दिए। कुछ ऐसी ही कहानी अंजलि की है, 6 वर्ष पहले पति की मृत्यु के बाद अंजलि सिलाई सेंटर से ट्रेनिंग लेकर आज उसी सेंटर में महिलाओं को सिलाई सिखा भी रही हैं, और साथ ही अपना बुटीक भी चला रही हैं। इस प्रकार करीब 10 सिलाई सेंटर चल रहे हैं, जिनसे 750 महिलाएं ट्रेनिंग ले चुकी हैं, और 480 महिलाएं अपने पैरों पर खड़ी हो चुकी हैं।
लाचार व्यक्तियों के लिए एक छोटा सा सहारा भी उनके जीवन को, स्वाभिमान के साथ मजबूत खड़ा रहने में बहुत सहायक होता है। दोनों हाथों से अपंग सुरेश पाडवी के लिए अपना खर्च भी चलाना बहुत मुश्किल था, पर आज वह अपने साथ अपने पूरे परिवार का पालन कर रहे हैं। एक छोटी सी परचून की दुकान जो 4 वर्ष पूर्व शबरी सेवा समिति के सहयोग से उन्हें मिली, आज उनके जीवन का आधार है। इस प्रकार करीब 460 विकलांग व नेत्रहीन लोगों की शबरी सेवा समिति द्वारा कई प्रकार से मदद की जा रही है।
वनवासी पहाड़ी क्षेत्रों में आमतौर पर व्यक्ति कृषि पर ही निर्भर रहता, है परंतु पानी की समस्या उसके जीवन में बहुत बड़ा संकट बन जाती है। समिति के सभी कार्यकर्ताओं के सहयोग से इस क्षेत्र में भी सूझबूझ और योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया जा रहा है।पालघर, सतपुड़ा जैसे अनेक क्षेत्रों को मिलाकर करीब 950 एकड़ भूमि में सिंचाई की व्यवस्था शबरी सेवा समिति द्वारा की गई है। वृक्षारोपण को प्रेरित करते हुए धड़गांव, जव्हार,अक्कलकुवा तहसीलों मे करीब 20,000 आम व अन्य फलों के पेड़ व 50,000 सागौन के वृक्ष लगाकर, परिवारों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया जा रहा हैं, सिंचाई व पेयजल की समस्या को देखते हुए गांव वालों के साथ मिलकर 32 कुएं, कहीं बोरवेल, कहीं पानी की टंकियां, तो कहीं पक्के सीमेंट के बांध भी बनाए गए है। इस प्रकार सेवा समिति द्वारा सिंचाई, कृषि, फल, बगीचे इत्यादि के जरिए करीब 5000 परिवार रोजगार पाकर आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हैं।
अपने लिए तो सभी जीते हैं परंतु अपने देशवासियों के लिए संपूर्ण जीवन ही समर्पित कर देना इतना सरल नहीं है। सचमुच प्रेरणादाई है, शबरी सेवा समिति के कार्य, जो वनवासी क्षेत्रों में लोगों का जीवन सरल करते हुए उन्हें देश की मुख्यधारा से जोड़ रहे हैं।